Monday, December 16, 2019

है बात एक रात की ... बस कल सभी को जाना है उम्र गुज़रेगी भरम में कब तलक एक दिन तो समझ आना है । उलझनें ये मेरी ... मुझ ही को तो सुलझानी हैं निग़ाह मोड़ लूं कुछ देर तो क्या ये बेमानी है ...। हज़ारों रंगों से सींचा जिस मिट्टी को आज उसमें सफेद फूल आते हैं सोचता हूँ ये भी ठीक ही है रंग दुनिया को मुबारक मुझे ये सादे फूल ही भाते हैं । खुद ही को ढूंढने को ... बा'सबब ये उम्र मिली सफर ये अंदर का है और आप महफिलें सजाते हैं । @ लवीना रस्तोगी
Chat Conversation End

Saturday, September 1, 2018

Thursday, March 2, 2017

Wednesday, February 22, 2017


                                       

न नौकरी बापू की , न माँ का श्रृंगार…
न धुले हुए चेहरे , न फूलों वाली फ्रॉक…
न साइकिल ,न झूले , न चटपटे स्वाद…
हर फूल गुलिस्तां का सरताज़ नहीं होता…
बचपन खिलौनों का मोहताज़ नहीं होता…
- लवीना रस्तोगी
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Friday, August 9, 2013

ख्वाजा मेरे ख्वाजा

मेरे गुनाह कभी मेरी नेकी से बड़े थे...
वर्ना तेरे दर पर रहमतों की कमी न थी 

घर से चला था तो थे और सूरत ऐ हालत ...
दर से तेरे चला तो मेरी शख्सियत और थी 

लब न खुले तलक न जुबां हिली मेरी ...
तूने दिया वो भी जो दर्खास्त मेरी न थी 

शिकवे इस जहाँ से होते थे तब तलक...
रहमत ऐ नूर से जब मुलाकात मेरी न थी